Wednesday, July 23, 2014

Chiithiyon ke Khoye hue din...


लॉन्ग लॉस्ट\इंडियन इनलैंड\लेटर 


आप लोगों मैं  से कितने लोगों को आज भी यह याद होगा की उन्होंने  ने आखिरी बार  अपने हाथ से  चिठी कब
लिक्खी थी,तोह जवाब यह है की बहुत कम लोगों को,क्यूंकि आज कल अगर किसी से कहो की  चिट्ठी लिखनी है तो  या तोह वह आपको अनपढ़ कह  देगा या पिछड़ा हुआ बोलकर आगे बढ़ जाएगा ///
आजकल तोह ईमेल का ज़माना है न। ....
 लेकिन सही मायनो मैं " ज़िन्दगी जितनी तेज़ होती जाती है उतनी ही दूर होती जाती है "।
चिट्ठी लिखने का मज़ा  वही लोग बयां कर सकते है जिसने किसी की चिट्ठियओ  का इंतज़ार  किया हो और  वोह भी कई बरस तक।
चिट्ठी लिखना अपने आप मैं एक ऐसा अनुभव है  जो न फ़ोन से और न ही ईमेल पर बताया या लिखा जा सकता हो। क्यूंकि ऐसा अक्सर होता है की कोई बात जो आपके दिल के एक कोने मैं कई लम्हों से हो वह जल्द बहार न आये.
लेकिन आपको एक बात तोह माननी ही पड़ेगी की चिठी लिखते  वक़्त आप वह बात उस पर लिख ही दोगे। क्यूंकि चिट्ठी लिखते वक़्त दिमाग से जयादा दिल पर ज़ोर दिया जाता है.…
फिर जब आप अपने दिल की बात उस कोरे कागज़ पर बायां करते है तोह वह शायद इतिहास ही बन जाये।                                 
आप  कभी सोच कर देखें  की पहले अपने अपनो से बात करने के लिए या
उनका हाल जानने के लिए दिन या महीने लग जाते थे.लेकिन वो जो इंतज़ार और फ़िक्र की बेचैनी मन मैं होती थी वो शायद आज आ ही न सके///
 फ़ोन  और ईमेल ने लोगों को हमारे करीब तो ला दिया है लेकिन एक इंतज़ार और अपनेपन का एहसास कहीं खो सा गया है क्यूंकि जब पहले जब आप अपने हाथ से चिट्ठी लिख कर किसी का हाल पूछते थे और फिर जवाब आने का इंतज़ार करते थे,,तो ,वो इंतज़ार के पल और वो  पोस्टमैन की घंटी कही खो सी गयी है.
क्यूंकि उस वक़्त जब आप उस चिट्ठी को पढ़ते थे तो मन ही मन हँसते भी थे और रोते भी थे और ना जाने उस अपने के ख्याल के साथ कहाँ खो जाते थे !!!!
तो आज भी उन् चीज़ों के लिए वक़्त जरूर निकाले जिनसे आपको खुशी मिलती है... 

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